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कविता

मूँछें, ब्रा और फेमिनिज्म

सुजाता


क्या बेहूदगी है !
- सॉरी सर ! बस हँस ही तो रही हूँ...

बकवास ! इस बहस को अभी, इसी वक्त खत्म किया जाए।

- ओह, डाली से उलटी लटकी चिड़िया के पंख में छिपा कीड़ा
आपकी नाक में घुस गया है
छींक कर उस पर एहसान नहीं करेंगे साहब !
कबूतर नोचते जो पंख फँसा है
खखार के थूकिये उसे ...धरा पावन हो जनाब !

खबरदार ! आगे एक शब्द नहीं...

ठीक। मैं चुप सुनूँगी ।
- इस परिवार में एक आप ही समझदार हैं
सालों से जेब भी है आपकी पैंट में
आप ही न्याय करें !
(फरियादी महिला की फरमायश पर; तलवारी आवाज और मूँछीले तर्कों का सिलसिला ...ढैन ट टैन...! )

होती पुरुष तो शोक में बढ़ा लेती मैं अपनी दाढ़ी
अभी तो वह खिचड़ी भी न होती
पैकअप कब होगा
मेरी नई कुर्ती की जेब में रखे चने खत्म हो गए तो
देखना !
जल्दी क्या है ! अभी तो एक गाना भी आएगा -
आजादी !

- दो गुलामियों के बीच चयन की स्वतंत्रता
दो औरतों के बीच तनी हुई रस्सी सा आदमी
दो आदमियों के बीच लटकी अधमरी औरत
तीन मुर्गे तीतर तीन
दिल्ली - मैक्लॉडगंज - दिल्ली !
बिहार - यूपी - कश्मीर !
काला - सफेद - रंगीन

एक सिंदूरवान फेमिनिस्ट रोती है कलीग के कंधे पर
वह हँसता है शातिर, दाँत क्लोजअप में
- अगली बेस्टसेलर आपकी होगी...
सद्योन्मुक्ता !

दीवारों पर सखियाँ हैं
छप्पन इंच के सीने हैं पोस्टरों पर
साथ में उनके खंभे मुस्तैद घिघियाए
एक सौ आठ में एक पोस्टर कम है

मेरी आँख चलेगी हुजूर ?
फोड़ लो, बहुत बोलती हैं।
सर, जल्दी नाराज होते हैं - कोई पानी पिलाओ
पॉर्न दिखाओ... पॉलिटिक्स सुनाओ ...नहीं नहीं सिर्फ सुनो
कभी नाव गाड़ी पर कभी गाड़ी नाव पर - परफेक्ट!
ई ल्योफोटू - रब ने बना दी जोड़ी टाइप
मार धड़ाधड़ लाइक, फटाफट
शुक्रिया !
शुक्रिया !
शुक्रिया !
ओह ...मैडम
झुकते-झुकते गिरीं
उड़ते-उड़ते बिखर गईं जुल्फें...
कोई इतनी तारीफ न करेरब्बा ! बैकस्टेज गईं ...
ब्रा हटा के कोई बार-बार मूँछें टाँग जाता है स्क्रीन पर
हटाओ यार !


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